गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

childhood

रविवार, ८ नवम्बर २००९
बहुत बहुत पहले
पहले
बहुत बहुत पहले
ईश्वर नहीं था

नहीं थे पाप और पुन्य
मोक्ष और परलोक भी नहीं था
ईश्वर का डर भी
नहीं था बहुत बहुत पहले
पहले
बहुत बहुत पहले
पेड़ नदियाँ सूरज चाँद और तारे थे
छिपकली और गोरैया थी
बहुत पहले
पहले
बहुत बहुत पहले
ईश्वर नहीं था
कल्पना कामना और जिज्ञासा थी
बहुत बहुत पहले



प्रस्तुतकर्ता chandan yadav पर ९:३२ अपराह्न 1 टिप्पणियाँ
बृहस्पतिवार, ३ सितम्बर २००९
मैं
मैं हूँ
इसलिए कि मैं नहीं था
मैं नहीं रहूँगा
क्योंकि मैं हूँ
तुम तो ऐसे पेश आते हो
जैसे हमेशा से थे
जैसे
हमेशा रहने वाले हो
प्रस्तुतकर्ता chandan yadav पर ९:५३ अपराह्न 0 टिप्पणियाँ
बुधवार, १० जून २००९
वह आदमी
मेरे पड़ोस में एक आदमी है

जिसकी आँखे देखती कम, नज़रंदाज़ ज्यादा करती हैं
किताब और रोशनाई की गंध उसके लिए बदबू है
मैनें उसे कभी किसी छोटे बच्चे को देखकर
खुश होते नहीं देखा

वह अक्सर कहते मिलता है -
सरकार ने दलितों को सर पर बिठा रखा है
बिहारियों ने रेलों की दुर्गति कर दी है
औरतें पांव की जूती बनाकर रखने में ही खुश रहती हैं
पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी है

सामानों से ठसाठस भरा है उसका घर
किताबों के लिए जरा भी जगह नहीं है वहां

मेरी गली में , शहर में और पड़ोस के शहर में
इसके जैसे लोगों की संख्या
लगातार बढती जा रही है
प्रस्तुतकर्ता chandan yadav पर ३:१३ पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: वह आदमी
मैं
धरती
मुझे गोद मैं उठाकर
गुलाबी ठण्ड से नहलाती है
फुहारों से भिगाती है

धरती
मुझे गोद मैं लेकर
सूरज के चक्कर लगाती है
प्रस्तुतकर्ता chandan yadav पर ३:०० पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
सोमवार, १ जून २००९
लौटना
कई बार मैं लौटना चाहता हूँ
अपने बचपन की गलियों में
पुराने दोस्तों के बीच
जो अब भी नए और ताजा हैं मेरे लिए

मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे खेल से थका बच्चा
लौट आता है मां की गोद में
जैसे प्रजनन के बाद
लौट आती हैं मछलियाँ अपनी पुरानी जगह पर
जैसे पूरे बरस को फलांगते हुए
लौट आती है जनवरी
पर कैसे लौटूंगा मैं
क्या मैं अब भी वही हूँ जो बरसों पहले
चला आया था अचानक यहाँ
क्या किसी के मन में
खाली होगी अब तक
मेरे जितनी जगह
मैं लौटना चाहता हूँ
पर कैसे
ऐसे जैसे कभी गया ही नहीं था
या ऐसे जैसे अनजान लोग
चले आते हैं परदेश में
लोगों के बीच अपनी जगह तलाशते हुए

चंदन यादव
प्रस्तुतकर्ता chandan yadav पर ११:११ अपराह्न 2 टिप्पणियाँ
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सोमवार, 7 दिसंबर 2009

आसमान की चादर

आसमान की चादर
सबसे लम्बी सबसे चौड़ी

इस चादर के नीचे हम सब

ओबामा और नत्थूलाल
नागासाकी और भोपाल
जूँ चींटी हाथी और व्हेल
सुख दुःख और आफत के जाल
सागर नदिया छोटा ताल

किसने इससे जूते पोंछे
किसने इसमें छेद किया
इस चादर के ऊपर ईश्वर
उनको इससे मतलब क्या

आसमान की चादर
सबसे लम्बी सबसे चौड़ी
इसके नीचे ठण्ड से ठिठुरे
एक छोटी सी मोड़ी


चंदन यादव